मन में बसे हुए हैं सबके
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय पर लिखी
आज परम श्रद्धेय पिता जी के श्राद्ध पर उनके प्रति एक गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
मन में बसे हुए हैं सबके, तन से लेकिन आज जो नहीं
ऐसे ज्ञान स्वरूप 'कुमुद' जी, लगता अपने साथ हैं यहीं।
थी साहित्य- साधना अनुपम, चित्रगुप्त जी के आराधक
जिस पथ पर वह बढे़ कभी भी, टिका न सम्मुख कोई बाधक
खूब काव्य- रस की धाराएँ, जिनके कारण यहाँ पर बहीं
ऐसे ज्ञान स्वरूप 'कुमुद' जी, लगता अपने साथ हैं यहीं।
हिंदी में जो लिखीं कहानी, पढ़कर सबने उनको माना
उनका भी अनुवाद हुआ जब, किसने नहीं उन्हें तब जाना
बने मुख्य लेखक पटना में, यह पदवी तो मिली थी वहीं
ऐसे ज्ञान स्वरूप 'कुमुद' जी, लगता अपने साथ हैं यहीं।
कई प्रांतों के बच्चों ने, उनको पढ़ा पाठ्यक्रम में जब
रचनाएँ जब उनको भायीं, फूले नहीं समाए वे तब
थे सच्चे साहित्यकार जो, सदा सरस्वती पास में रहीं
ऐसे 'ज्ञान स्वरूप कुमुद' जी लगता अपने साथ हैं यहीं।
जीव- जंतुओं के हित में भी, काम यहाँ इतने कर डाले
जब इलाज कर जान बचाई, कहलाए उनके रखवाले
उनपर खर्च किया अपना धन, पीड़ाएँ खुद भले ही सहीं
ऐसे ज्ञान स्वरूप 'कुमुद' जी, लगता अपने साथ हैं यहीं।
मानवता के थे संरक्षक, नहीं लालसा उनको कोई
सचमुच देव- तुल्य थे वे तो, फसल प्रेम की ऐसी बोई
छू लेतीं अब भी सबका मन, बातें जो भी यहाँ पर कहीं
ऐसे ज्ञान स्वरूप 'कुमुद' जी,लगता अपने साथ हैं यहीं।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
'कुमुद- निवास'
बरेली (उ. प्र.)
मोबा.- 98379 ४४१८७
२३/०९/२०२२
Pratikhya Priyadarshini
24-Sep-2022 12:47 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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आँचल सोनी 'हिया'
24-Sep-2022 11:57 AM
Bahut khoob 💐👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
24-Sep-2022 08:18 AM
बहुत ही सुंदर सृजन
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